Saturday, April 20, 2024
Advertisement
  1. You Are At:
  2. News
  3. Articles
  4. Hemant Sharma
  5. world of baddies

दुष्टता की दुनिया

Hemant Sharma

दुष्टता आजकल राजधर्म है और दुष्ट सर्वव्यापी। दुष्टजन सज्जनों को हमेशा से त्रस्त करते आए हैं। सच पूछिए तो जमाना हमेशा से दुष्टों का ही रहा है। वे निराकार ब्रह्म की तरह हर कहीं मौजूद रहते हैं। शायद इसीलिए रामचरित्र का बखान करने से पहले तुलसीदास को भी खलवंदना करनी पड़ी। सूरदास ने भी खल के अस्तित्व को स्वीकार करते कहा “मो सम कौन कुटिल खल कामी”। पूजा पद्धति में भी दुष्ट ग्रहों राहु-केतु को पहले पूजते हैं। ताकि वे तंग न करें। दुष्ट हर देश, काल, जाति, वर्ण, लिंग में पाए जाते हैं। पर-संतापी और विघ्न संतोषी दुष्टों को दूसरों के दुख से खुशी होती है। दुष्टों से मुक्त भी कैसे हो सकते हैं। क्योंकि घोर दुष्टता ही सज्जनता को परिभाषित करेगी। यानि दुष्टता कसौटी है सज्जनता की। ठीक उसी तरह जैसे अंधेरे के बिना रोशनी का क्या महत्व?

लेकिन सबके अपने-अपने दुष्ट हैं। मनमोहन सिंह अपने खिलाफ नाकारा प्रधानमंत्री का आरोप लगाने वालों को दुष्ट मानते हैं। कांग्रेस इस बात से परेशान है कि कुछ दुष्ट परम पवित्र गांधी परिवार पर हमला कर रहे हैं। नितिन गडकरी की परेशानी यह है कि उनके दूसरे कार्यकाल से दुखी कुछ पर-संतापी अपनी ही पार्टी के दुष्ट नेता उनके ख़िलाफ कालिख अभियान में लगे हैं।
 
दुष्टता एक मनोविकार है जो लोभ, मोह, क्रोध के संयोग से बनता है। यह मनोविकार लोगों को तंग होता, परेशान - हाल, आपस में लड़ते हुए देखना चाहता है। अगर दो लोगों में लड़ाई न भी हो रही हो तो ये दुष्ट कुत्तों, मुर्गों और सांडों की लड़ाई में ही आनन्दित होते हैं। सड़क पर पड़े पत्थर पर ठोकर मारना हो या किसी के घर की घंटी बजाकर भागना, किसी जानवर की पूंछ खींचना हो या चलते-चलते लात चला देना यह दुष्टों की पहचान की सामान्य प्रवृत्ति है।
 
कहते हैं सभ्यता के मूल में ही एक दुष्ट था। जिसने हव्वा को फल खाने की प्रेरणा दी। और उन्हें आदम के साथ मेसोपोटामिया के नन्दन वन से निकाला गया। ईसाई, यहूदी, मुसलमान सभी सृष्टि के निर्माण में शैतान के महत्व को स्वीकारते हैं। अब अगर संसार के निर्माण के मूल में दुष्टता है तो दुष्टों के महत्व को मानना ही पड़ेगा। हर युग में ‘खलों’ की निर्णायक भूमिका रही है। ईसा को धोखे से पकड़वा सूली पर चढ़वाने वाला दुष्ट जुड़ास ही था। राम कथा से कैकेई और मन्थरा की दुष्टई निकाल दीजिए तो कहानी खत्म हो जाएगी। बुद्ध का दुष्ट भाई देवदत्त न होता तो दुनिया को यह पता ही नहीं चलता कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। एक दुष्ट धोबी के आरोप से राम को जनहित में निरपराध सीता को घर से निकालना पड़ा था। कृष्ण के ईश्वरत्व और उनकी महानता का पता ही न चलता अगर कंस, शिशुपाल और जरासंध उनके जीवन में न आए होते। शकुनी न होता तो कौरवों का अंत कैसे होता। चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में फिरंगियों से पकड़वाने वाला उनका एक दुष्ट मित्र ही था।
 
दुष्ट पंडितों ने विद्योत्तमा का विवाह मूर्ख कालिदास से करा दिया। सिर्फ विदुषी विद्योत्तमा को नीचा दिखाने के लिए। मेरे विवाह में भी कुछ दुष्टों ने यह खबर फैला दी कि मैं शराबी और जुआरी हूं। ताकि विवाह में विघ्न पड़े। ससुराल वालों ने बाद में इसकी पड़ताल भी कराई। अब अगर संसार प्रभु की लीला है तो दुष्ट और दुष्टता भी उसी के बनाए हुए हैं। चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट धरती पर नीम के वृक्ष हैं। जिन्हें दूध या घी से सींचे तो भी उनमें मिठास नहीं आऐगी। आजकल कोई भी टी.वी. सीरियल बिना दुष्ट महिलाओं के नहीं बनते। जिसका असर आप अपने घरों में देख सकते हैं।
 
नीच, अधम, पातकी, पापी ये सब दुष्टों के प्रकार हैं। संस्कृत से चलकर दुष्ट की छाया फारसी पर भी बरास्ता अवेस्ता पड़ी। फारसी में इन्हे ‘दुश्त’ कहते हैं। फारसी के ही बदमाश का ‘बड’ अंग्रेजी के ‘बैड’ से सीधा रिश्ता जोड़ता है। यजुर्वेद में दुष्टों से दूर रखने की बाकायदा प्रार्थना है। अथर्ववेद में कौऐ जैसे प्रकृति वाले दुष्टों को आस्तीन का सांप कहा गया है। निंदा रस दुष्टों को बड़ा स्वादिष्ट लगता है। पर-निंदा में उन्हें बड़ी संतुष्टि और आनंद है। पर-निंदा इन्हे ऊर्जा देती है। उनका खून साफ करती है। खाना पचाती है। कमजोरी का शर्तिया इलाज है। हालांकि कबीर का निंदक दुष्ट नहीं आलोचक है। इसलिए उन्होने निंदक को पास रखने की सलाह दी।
 
दुष्टों के राजनीतिक संस्करण भी मिलते हैं। यहां यह कनफुकवा बिरादरी है। जो सिर्फ कान में फूंक कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। कान में फूंक कर यह संप्रदाय आज सत्ता के केंद्रों में बड़े ताकतवर है। इसी बिरादरी के लोग राजनैतिक सचिव से लेकर ओ.एस.डी. तक कहे जाते हैं। इनकी खूबी है सबको पीछे ढकेल ऊपर पहुंचना। यह संप्रदाय दुष्टता का नया अवतार है।

हमारे पास तापमापी यंत्र है। वर्षामापी यंत्र है। शुष्कतामापी यंत्र है। आर्द्रतामापी यंत्र है। मगर दुष्टतामापी यंत्र नहीं है। बढ़ती दुष्टता को कंट्रोल करने के लिए अगर एक दुष्टतामापी यंत्र हो तो दुष्टों पर नजर रखना आसान होगा।

भगवान कृष्ण ने गीता में बार बार कहा कि वह दुष्टों के अंत के लिए कलयुग में जन्म लेंगे। हर साल जन्माष्टमी आती है। पर कृष्ण जन्म नहीं लेते। शायद वह यह समझ गए हैं कि दुष्टता का अंत संभव नहीं। दुनिया से दुष्ट खत्म हो जाएंगे तो संतों को पूछेगा कौन! इसलिए मैं दुष्टों के अस्तित्व को स्वीकार कर उन्हें प्रणाम करता हूं। क्योंकि दुष्टों की दोस्ती और दुश्मनी दोनों मुसीबत में डालने वाली हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement